निर्देशक एस एस राजामौली के 21 साल के करियर की ‘आरआरआर’ 12वीं फिल्म है। राजामौली की अब तक की सारी फिल्में कामयाब रही हैं जो फिल्मे हिट नहीं भी रहीं, उन्होंने भी बॉक्स ऑफिस पर अपने निर्माता का पैसा डुबोया नहीं। उनकी पिछली दो फिल्में ‘बाहुबली’ और ‘बाहुबली 2’ विश्व सिनेमा के परिदृश्य पर भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी धमक रही हैं। ऐसा सफल निर्देशक जब अपनी अगली फिल्म के साथ थियेटर पहुंचता है तो यकीनन उससे उम्मीदें कई गुणा बढ़ जाती है। राम चरण (Ram Charan) और जूनियर एनटीआर (Jr NTR) स्टारर निर्देशक एसएस राजामौली की फिल्म ‘आरआरआर’ से दर्शकों और क्रिटिक्स सभी की उम्मीदें काफी ज्यादा है।
क्या है फिल्म की कहानी
फिल्म ‘आरआरआर’ की कहानी 1920 के दशक में स्वंत्रता से पहले के आदिलाबाद जिले की है। तब देश अंग्रेजों की गुलामी से पीड़ित था। एक नहीं बच्ची मल्ली को अंग्रेज अपने साथ इसलिए उठा ले जाते हैं, क्योंकि उन्हें उसकी आवाज अच्छी लगती है। वहीं उनकी कौम का गड़रिया अर्थात रखवाला कोमाराव भीमुडो (जूनियर एनटीआर) उस नन्हीं बच्ची को अंग्रेजों के चंगुल से उठा ले जाने का बीड़ा उठाता है। दूसरी ओर ब्रिटिश सरकार में पुलिस अधिकारी के पद पर कार्यरत राम (रामचरण) का काम ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत और क्रांति का बिगुल बजाने वाले क्रांतिकारियों को पकड़कर कड़ी सजा देना है। राम इधर भीम को गिरफ्तार करने के मिशन पर निकल पड़ता है। अगर वह भीम को जिंदा गिरफ्तार कर लेगा, तो अंग्रेज सरकार उसे इनाम के रूप में स्पेशल पुलिस का पद दे देगी। इस अहम पद को पाने में राम का भी अपना एक गहरा और छुपा हुआ मकसद है। फिर हालात ऐसे बनते हैं कि राम और भीम एक-दूसरे की असलियत से बेखबर बहुत पक्के दोस्त बन जाते हैं। इतने पक्के कि एक-दूसरे पर जान न्योछावर कर दें। अब जब उन्हें यह पता चलेगा कि वे एक-दूसरे के दुश्मन हैं, तो क्या उनकी दोस्ती कायम रह पाएगी? क्या वे अपने मकसद को भूल जाएंगे? ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
किसका कैसा है काम
राजमौली सिनेमा के उन फिल्मकारों में से हैं, जिन पर हमें गर्व होना चाहिए कि इंडियन सिनेमा में हमारे अपने किरदारों के साथ भी इस तरह के विजुअल इफेक्ट्स वाली फिल्में बन सकती हैं। निर्देशक ने दोनों ही किरदारों के इंट्रोडक्शन सीन को कुछ इस तरह सजाया है कि आप जान जाते हैं कि इन किरदारों का मिजाज कैसा होगा। दोनों कलाकारों द्वारा पानी से बच्चे को बचाया जाने वाला सीन हो, या अंग्रेजों से लोहा लेने वाले दृश्य, हर सीन आपकी सांस रोक देता है।दर्शक के तौर पर कभी आप चीखते हैं, तो कभी सीटी या ताली बजाते हैं। फिल्म का फर्स्ट हाफ बहुत मजबूत है। आप उत्तेजना के प्रवाह में बहते जाते हैं,मगर सेकंड हाफ में कहानी थोड़ी खिंच जाती है, हालांकि विजुअल्स और स्पेशल इफेक्ट्स उस कमी को ढक लेते हैं। फिल्म की लंबाई थोड़ी कम की जा सकती थी। कहानी महज दो बिंदुओं पर ही चलती है और इसके कारण उसका विस्तार कम प्रतीत होता है। कई बार भव्यता कहानी पर भारी पड़ती नजर आती है। राम चरण का भगवा धोती पहनकर तीर और धनुष के साथ भगवान राम के रूप में आकर अंग्रेजों के संहार का सीन खास बन पड़ा है। हालांकि राजामौली कहीं न कहीं हमें अपने मूल से जोड़ते हैं और क्लाइमेक्स तक आते-आते वे एक क्रिएटिव पर्सन के रूप में ये मेसेज देना नहीं भूलते कि आजादी की लड़ाई में हर धर्म और समुदाय का योगदान था।
निष्कर्ष
एसएस राजामौली के इस जादुई करिश्मे को देखना एक अनुभव है। आरआरआर एक परफेक्ट मसाला मूवी है। जो दर्शकों को हंसाएगी, नचाएगी, रुलाएगी, गर्व से भर देगी। फिल्म का वीएफएक्स कमाल है। संगीत की बात करें तो एमएम किरवानी के संगीत में 'नाचो नाचो' गाना देखने में अच्छा लगता है पर फिल्म का संगीत 'बाहुबली' जितना ब्लॉक बस्टर नहीं होगा । फ़िल्म में केवल दो ही चीजें हैं जो खटकती हैं। पहली- जेल तोड़ने वाले सीन का थोड़ा ज्यादा ही फिल्मी और ओवर द टॉप होना और दूसरा- फिल्म का अचानक से खत्म होना। जबकि आप उम्मीद करते हैं कि अभी कुछ और भी होगा। इसके अलावा फिल्म जबरदस्त है।