मुंबई, 20 मई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। वक्फ (संशोधन) कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को लगातार दूसरे दिन सुनवाई हुई। इस दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत के समक्ष दलील दी कि यदि कोई भूमि सरकारी घोषित है, तो उस पर किसी अन्य का अधिकार नहीं हो सकता चाहे वह 'वक्फ बाय यूजर' की परंपरा से जुड़ी हो या नहीं। मेहता ने स्पष्ट किया कि यदि कोई ज़मीन सरकार की है, तो सरकार को उसे पुनः अधिग्रहित करने का पूरा अधिकार है, भले ही उसे वक्फ संपत्ति घोषित किया गया हो। उन्होंने यह भी कहा कि अब तक किसी भी पक्ष ने अदालत में यह दावा नहीं किया है कि संसद को इस कानून को बनाने का अधिकार नहीं है। सरकार की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि वक्फ एक इस्लामी अवधारणा अवश्य है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। जब तक यह सिद्ध न हो, तब तक अन्य सभी दलीलों का कोई आधार नहीं बनता।
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिंह की पीठ सिर्फ पांच प्रमुख याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इन याचिकाओं में एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका भी शामिल है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल अदालत में पक्ष रख रहे हैं। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कानून जल्दबाज़ी में नहीं बनाया गया है। तुषार मेहता ने बताया कि यह कोई ऐसा मामला नहीं है जिसमें मंत्रालय ने बिना विचार-विमर्श के कोई विधेयक लाकर उस पर मतदान करा दिया हो। उन्होंने कहा कि कुछ याचिकाकर्ता मुस्लिम समुदाय की संपूर्ण राय का प्रतिनिधित्व नहीं करते, और यह भी महत्वपूर्ण है कि याचिकाएं ऐसे लोगों द्वारा दायर की गई हैं जो प्रत्यक्ष रूप से इस कानून से प्रभावित नहीं हैं। सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि कानून बनाने से पहले संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की 96 बैठकें हुईं और 97 लाख लोगों से सुझाव प्राप्त किए गए। इन सभी सुझावों और चर्चाओं के आधार पर ही यह संशोधन कानून तैयार किया गया।