मुंबई, 14 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को दिल्ली-NCR में आवारा कुत्तों को शेल्टर होम में भेजने के आदेश को लेकर लंबी सुनवाई हुई। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की स्पेशल बेंच ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि नसबंदी से रेबीज नहीं रुकता और बच्चों पर हमले की घटनाएं लगातार हो रही हैं। उन्होंने बताया कि हर साल करीब 37 लाख डॉग बाइट के मामले सामने आते हैं और रेबीज से 305 मौतें दर्ज हुई हैं। उनका कहना था कि कोई भी जानवरों से नफरत नहीं करता, लेकिन समाधान सिर्फ नियमों में नहीं है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने 11 अगस्त को आदेश दिया था कि आठ हफ्तों में दिल्ली-NCR के सभी आवारा कुत्तों को आवासीय इलाकों से हटाकर शेल्टर होम में भेजा जाए। कोर्ट ने इस काम में बाधा डालने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी भी दी थी। इस आदेश का कई स्तरों पर विरोध हुआ, जिसके बाद मामला तीन जजों की स्पेशल बेंच को सौंपा गया। सुनवाई के दौरान जस्टिस विक्रम नाथ ने नगर निगम की निष्क्रियता पर सवाल उठाए और कहा कि अधिकारियों को जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि कुत्तों को तो उठाया जा रहा है, लेकिन शेल्टर होम मौजूद नहीं हैं। सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि आदेश पर रोक लगनी चाहिए क्योंकि न तो शेल्टर बने हैं और न ही नसबंदी पूरी हुई है। उन्होंने आरोप लगाया कि नगर निगम के पास बजट होते हुए भी इसका सही उपयोग नहीं किया गया। अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कहा कि शेल्टर होम के बिना यह आदेश व्यावहारिक नहीं है और एबीसी नियमों का पालन होना चाहिए। सरकार का पक्ष रखते हुए तुषार मेहता ने कहा कि एक वर्ग खुद को पशु प्रेमी बताता है, जबकि पीड़ित लोग चुप रहते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों को खुले में खेलने नहीं भेजा जा सकता और सभी पक्षों को मिलकर व्यावहारिक समाधान निकालना होगा। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपना फैसला सुनाएगा।