गर्मी का मौसम अभी शुरू भी नहीं हुआ है और देश के एक राज्य में भीषण जल संकट पैदा हो गया है. लोगों को पानी के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. यहां के बोरवेल सूख गए हैं. पानी के टैंकरों के सामने लोगों की लंबी कतारें देखी जा रही हैं. जल संकट का असर न सिर्फ आम लोगों तक बल्कि मुख्यमंत्री आवास तक भी पहुंचा है. हम बात कर रहे हैं कर्नाटक की, जहां राजधानी बेंगलुरु में पानी को लेकर हंगामा मचा हुआ है.
लोग पानी के टैंकरों पर निर्भर हैं
एक रिपोर्ट के मुताबिक, बेंगलुरु के कई इलाकों में बोरवेल सूख गए हैं. लोगों को पानी के टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है. एआर नगर के पूरे पट्टांगेरे में लोगों को पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है. लोगों का आरोप है कि अगर वे एक से अधिक बर्तनों में पानी ले जाते हैं तो अधिकारी उन्हें वापस भेज देते हैं.
पिछले तीन माह से पानी की कमी हो रही है
स्थानीय लोगों का यह भी आरोप है कि अधिकारी उनके बच्चों को भी अपने साथ नहीं रहने देते. वे उन्हें वापस भेज देते हैं. लोगों का कहना है कि उनके पास नहाने और गायों को खिलाने के लिए पानी नहीं है। हमें खाना पकाने के लिए नगर निगम के पानी का उपयोग करना पड़ता है। पिछले तीन माह से पानी की कमी है.
'पानी के दाम गिरने से टैंकर आने बंद हो गए'
स्थानीय लोगों का यह भी आरोप है कि पानी के लिए उन्हें घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता है. पीने के पानी के लिए आरओ प्लांट से केवल एक कैन ले जाने की अनुमति है। अब हमें प्रत्येक कैन के लिए 2000 रुपये से ज्यादा चुकाने पड़ रहे हैं, जिसके लिए पहले 600 से 1000 रुपये वसूले जाते थे. लोगों का आरोप है कि जब उन्होंने निजी टैंकरों से पानी के दाम कम करने को कहा तो उन्होंने उनके इलाके में आना बंद कर दिया. सरकार को रोजाना ई-मेल भेजे जाते हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं होता।
डिप्टी सीएम के घर का बोरवेल भी सूख गया
डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार का कहना है कि मेरे घर का बोरवेल भी सूख गया है. सीएम आवास में पानी का एक टैंकर भी प्रवेश करता देखा गया. शहर में 3000 से ज्यादा बोरवेल सूख गए हैं.
जल संकट की चेतावनी को सरकार नजरअंदाज करती है
बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने कहा कि बेंगलुरु में जल संकट गंभीर होता जा रहा है. विशेषज्ञों ने सरकार को जल संकट के बारे में चेताया, लेकिन सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की. सैकड़ों अपार्टमेंट में पीने के पानी की एक बूंद भी नहीं है. शहर के करीब 50 फीसदी बोरवेल सूख चुके हैं. सरकार यह कहना चाह रही है कि हम टैंकरों का अधिग्रहण करेंगे. वे पहले से मौजूद आपूर्ति श्रृंखलाओं को भी बाधित कर रहे हैं और टैंकरों पर कब्ज़ा करके समस्या को बढ़ा रहे हैं।