मुंबई, 09 मई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ओपन जेल की बनाने से जेलों में बढ़ती कैदियों की संख्या की समस्या का समाधान हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि ओपन या सेमी ओपन जेल कैदियों को दिनभर जेल परिसर से बाहर काम करने और शाम वापस जेल में लौटने का ऑप्शन देती है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि ओपन जेल कैदियों को समाज में घुलने-मिलने और उनके साइकोलॉजिकल प्रेशर को कम करने में भी मदद करेगी। साथ ही कैदियों की आजीविका में भी सुधार करेगा। जेल और कैदियों की हालत से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा दौर में राजस्थान में ओपन जेल की व्यवस्था पर अच्छे ढंग से काम हो रहा है। कोर्ट चाहता है कि देशभर में ओपन जेल का विस्तार हो। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले के माध्यम से हम अन्य अदालतों में चल रहे जेल और कैदियों से जुड़ें लंबित मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
तो वहीं, सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया कि एजेंसी ने ओपन जेल को लेकर सभी राज्यों से उनके विचार मांगे थे। इस पर अब तक 24 राज्यों ने अपना जवाब भेजे हैं। मामले में न्यायमित्र (एमिकस क्यूरे) के तौर पर काम कर रहे सीनियर वकील विजय हंसारिया ने कैदियों में लॉ अवेयरनेस की कमी का हवाला देते हुए कहा कि दोषियों को बताया नहीं जाता कि वे कानूनी सेवा प्राधिकरण के जरिए अपीलीय अदालतों में जाकर अपने मामले से जुड़ी कमियों को दूर करवा सकते हैं और सजा से बच सकते है। हंसरिया के इस तर्क पर कोर्ट ने देश में यूनिफॉर्म ई- प्रिजन मॉड्यूल की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि ई प्रिजन मॉड्यूल इस तरह की समस्याओं को आसानी से निपटाया जा सकता है। कोर्ट ने NALSA के वकील और सीनियर वकील विजय हंसारिया से मामले में आगे भी न्यायमित्र के तौर पर कोर्ट की सहायता करने का अनुरोध किया है। मामले की अगली सुनवाई 16 मई को होगी।