मुंबई, 02 मई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। कोरोना वैक्सीन कोवीशील्ड पर उठ रहे सवालों के बीच कोवैक्सिन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक ने कहा है कि हमारी वैक्सीन सुरक्षित है। इसे बनाते समय हमारी पहली प्राथमिकता लोगों की सुरक्षा थी और दूसरी प्राथमिकता वैक्सीन की गुणवत्ता थी। भारत बायोटेक ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक पोस्ट में ये बातें कहीं। कंपनी ने कहा कि कोवैक्सिन भारत सरकार के कोविड-19 वैक्सीन प्रोग्राम की इकलौती वैक्सीन थी, जिसके ट्रायल भारत में हुए थे। कंपनी के मुताबिक, लाइसेंस पाने की प्रक्रिया के तहत कोवैक्सिन का 27 हजार लोगों पर ट्रायल किया गया था। इसे क्लिनिकल ट्रायल मोड के तहत सीमित इस्तेमाल के लिए लाइसेंस दिया गया था, जहां हजारों लोगों पर इसका ट्रायल किया गया था। दरअसल, कोवीशील्ड को लेकर विवाद चल रहा है कि इसे लगाने से कुछ केस में लोगों को थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी TTS हो सकता है। इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है। स्ट्रोक और हार्ट बीट थमने जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
कंपनी ने कहा कि कोवैक्सिन की सुरक्षा का मूल्यांकन देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने किया था। कोवैक्सिन बनाने से लगाने तक लगातार इसकी सेफ्टी मॉनिटरिंग की गई थी। कोवैक्सिन के ट्रायल से जुड़ी सभी स्टडीज और सेफ्टी फॉलो-अप एक्टिविटीज से कोवैक्सिन का बेहतरीन सेफ्टी रिकॉर्ड सामने आया है। अब तक कोवैक्सिन को लेकर ब्लड क्लॉटिंग, थ्रॉम्बोसाइटोपीनिया, TTS, VITT, पेरिकार्डिटिस, मायोकार्डिटिस जैसी किसी भी बीमारी का कोई केस सामने नहीं आया है। अनुभवी इनोवेटर्स और प्रोडक्ट डेवलपर्स के तौर पर भारत बायोटेक की टीम यह जानती थी कि कोरोना वैक्सीन का प्रभाव कुछ समय के लिए हो सकता है, पर मरीज की सुरक्षा पर इसका असर जीवनभर रह सकता है। यही वजह है कि हमारी सभी वैक्सीन में सेफ्टी पर हमारा सबसे पहले फोकस रहता है।
आपको बता दें, पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ने देश में कोरोना की पहली वैक्सीन बनाई थी। इसे कोवीशील्ड नाम दिया गया। इसका फॉर्मूला ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका की कोविड-19 वैक्सीन से लिया गया था। हाल ही में एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटेन के कोर्ट में माना है कि उनकी कोविड-19 वैक्सीन से खतरनाक साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। हालांकि ऐसा बहुत रेयर (दुर्लभ) मामलों में ही होगा। ब्रिटिश मीडिया टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, एस्ट्राजेनेका पर आरोप है कि उनकी वैक्सीन से कई लोगों की मौत हो गई। वहीं कई अन्य को गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा। कंपनी के खिलाफ हाईकोर्ट में 51 केस चल रहे हैं। पीड़ितों ने एस्ट्राजेनेका से करीब 1 हजार करोड़ का हर्जाना मांगा है। ब्रिटिश हाईकोर्ट में जमा किए गए दस्तावेजों में कंपनी ने माना है कि उसकी कोरोना वैक्सीन से कुछ मामलों में थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी TTS हो सकता है। इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है। इसके बाद भारत में कोवीशील्ड पर भी सवाल उठाए जाने लगे। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को कोरोना वैक्सीन कोवीशील्ड की जांच के लिए एक याचिका दाखिल की गई। इसमें कहा गया है कि कोवीशील्ड के साइड इफेक्ट्स की जांच करने के लिए एक्सपर्ट पैनल बनाने का निर्देश जारी किया जाए।