समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से देशवासियों को एक महत्वपूर्ण चेतावनी दी है. उन्होंने नागरिकों से उन तत्वों से सतर्क रहने का आह्वान किया है जो हिंसक और विभाजनकारी सोच रखते हैं.
यादव ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा कि जिन लोगों की सोच में 'शस्त्र को शास्त्र से बड़ा' मानने की प्रवृत्ति है, उन्हें शिक्षालयों, विश्वविद्यालयों और पूरे समाज से दूर रखना हर सभ्य नागरिक की जिम्मेदारी है.
शिक्षा को हिंसक सोच से बचाना जरूरी
अखिलेश यादव ने अपने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पोस्ट में शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया: “शिक्षा हिंसक सोच को सभ्य बनाती है. शिक्षा को हिंसक सोच के लोगों से बचाना हर सभ्य नागरिक की जिम्मेदारी है.”
उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे व्यक्तिगत रूप से ऐसे नकारात्मक शक्ति-कामी लोगों से दूर रहें और अपने परिवार व मित्रों को भी इस तरह की सोच से सावधान करें. यह संदेश सामाजिक सद्भाव और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा पर ज़ोर देता है.
'विषबेल' और पुरानी सत्ता संरचना
पूर्व मुख्यमंत्री ने इस तरह की विभाजनकारी सोच को एक 'विषबेल' (जहरीली बेल) बताया, जो जमीन और सहारा पाते ही तेज़ी से फैलती है. उन्होंने इन तत्वों पर सीधा हमला करते हुए कहा कि ये लोग “सामाजिक विभाजन और विद्वेष की भट्टी पर अपने स्वार्थ की रोटी सेंकते हैं.”
यादव के अनुसार, इन तत्वों का मुख्य उद्देश्य पांच हजार साल पुरानी सत्ता संरचना को बनाए रखना है, ताकि समाज में ऊपर के लोग हमेशा ऊपर बने रहें और नीचे के लोग शोषण सहते रहें. यह टिप्पणी समाज में समानता और आरक्षण के विरोधियों पर एक सीधा प्रहार मानी जा रही है.
पीडीए समाज जाग उठा है: अखिलेश यादव
अखिलेश यादव ने दावा किया कि अब पीडीए (PDA) समाज जाग गया है. पीडीए को उन्होंने पीड़ित, दलित, आदिवासी वर्ग के रूप में परिभाषित किया. उनके अनुसार, इस वर्ग की जागृति से इन नकारात्मक तत्वों के "हाथ-पैर फूलने लगे हैं."
उन्होंने आगे कहा कि ये डरपोक और 'सुरंगजीवी' लोग मानसिक रूप से अपनी लड़ाई हार चुके हैं और अब अपने अंत की ओर बढ़ रहे हैं. इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि देश का 95 फीसद उत्पीड़ित समाज अब और पीड़ा सहने को तैयार नहीं है.
अखिलेश यादव ने अपना संदेश एक सशक्त नारे के साथ पूरा किया: “जो पीड़ित, वो पीडीए और पीड़ा बढ़ रही है, इसीलिए पीडीए बढ़ रहा है.”
यह पोस्ट न सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी है, बल्कि समाज में सद्भाव, समानता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए नागरिकों को एकजुट होने का एक स्पष्ट आह्वान भी है.