मंगलवार की सुबह मथुरा में दिल्ली-आगरा एक्सप्रेसवे पर घना कोहरा एक भयावह दुर्घटना का कारण बना. इस मल्टी-व्हीकल टक्कर में 7 बसें और 3 कारें आपस में भिड़ गईं. टक्कर इतनी भीषण थी कि एक बस में तुरंत आग लग गई, जिसके परिणामस्वरूप दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से 13 लोगों की मौत हो गई. कई यात्रियों ने खिड़कियां तोड़कर या चलती बस से बाहर कूदकर किसी तरह अपनी जान बचाई. प्रारंभिक जांच में पता चला है कि बस तेज रफ्तार में थी और टक्कर लगते ही आग तेजी से फैली, जिससे यात्रियों को संभलने का मौका नहीं मिला.
यह दुखद घटना देश की परिवहन व्यवस्था और यात्री सुरक्षा पर एक गंभीर चेतावनी है. पिछले दो महीनों से लगातार बस में आग लगने, यात्रियों के जिंदा जलने या दम घुटने से मौत की खबरें आ रही हैं. अब सवाल यह नहीं है कि हादसे क्यों हो रहे हैं, बल्कि असली सवाल यह है कि बार-बार ऐसी घटनाओं के बावजूद जिम्मेदार एजेंसियां जाग क्यों नहीं रही हैं. तेज रफ्तार, तकनीकी खामियां, घटिया निर्माण सामग्री और नियमों की खुलेआम अनदेखी, ये सभी मिलकर यात्रियों को मौत के मुंह में धकेल रहे हैं. हर हादसे के बाद जांच के आदेश होते हैं, कुछ दिन शोर मचता है, और फिर सब कुछ पहले जैसा हो जाता है.
आग लगते ही क्यों जाम हो जाते हैं बसों के गेट?
लगभग हर बड़े बस अग्निकांड में एक बात सामान्य तौर पर सामने आती है: आग लगते ही बस का मुख्य गेट जाम हो जाता है. गेट लॉक होने के बाद बस तुरंत एक बंद गैस चैंबर में बदल जाती है. अंदर फंसे यात्रियों के लिए बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं बचता, और कुछ ही सेकंड में गर्म और जहरीला धुआं उनके फेफड़ों तक पहुंच जाता है, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है.
इसकी असली वजहें ये हैं:
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घटिया इंटीरियर और अव्यवस्थित वायरिंग: बसों में अक्सर गैर-मानक वायरिंग होती है. शॉर्ट सर्किट होने पर आग तेजी से फैलती है और बिजली का पूरा सिस्टम फेल हो जाता है.
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गैर-मानक संरचना: घटिया निर्माण और बॉडी डिज़ाइन के कारण टक्कर या आग की स्थिति में दरवाज़े जाम हो जाते हैं, जिससे आपातकालीन निकास के अवसर खत्म हो जाते हैं.
इंटीरियर ही बन जाता है आग का ईंधन
ज्यादातर यात्री बसों में इस्तेमाल होने वाला इंटीरियर, यात्री सुरक्षा मानकों के लिहाज़ से बेहद खतरनाक होता है.
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ज्वलनशील सामग्री: सीटों और छत में इस्तेमाल होने वाला फोम, रेक्सीन और अन्य सिंथेटिक सामग्री ज्वलनशील होती है और बहुत जल्दी आग पकड़ लेती है.
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बिजली के तारों का जाल: इन्हीं ज्वलनशील सामग्रियों के बीच से बिजली के तारों का जाल गुजरा होता है. ऐसे में शॉर्ट सर्किट या हल्की सी चिंगारी भी पूरे बस को आग का गोला बना देती है. यह सामग्री जलने पर अत्यधिक जहरीला धुआं भी छोड़ती है, जो मौत का तात्कालिक कारण बनता है.
सड़क पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार और परिवहन एजेंसियों को न केवल नियमों को कड़ाई से लागू करना होगा, बल्कि बसों में इस्तेमाल होने वाली निर्माण सामग्री और सुरक्षा मानकों की नियमित जांच भी करनी होगी. यात्रियों की जिंदगी को हल्के में नहीं लिया जा सकता.