तेल कंपनियों को बड़ी राहत की उम्मीद, LPG पर घाटा 45% तक हो सकता है कम, सामने आई ये वजह

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Posted On:Monday, May 19, 2025

भारत में एलपीजी यानी तरल पेट्रोलियम गैस का उपयोग घरेलू और व्यावसायिक दोनों क्षेत्रों में बहुतायत से होता है। खासतौर पर खाना पकाने के ईंधन के रूप में यह ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में अत्यंत आवश्यक है। लेकिन मौजूदा समय में एलपीजी के उत्पादन में अपेक्षित वृद्धि नहीं होने और आयात पर बढ़ती निर्भरता के कारण देश की तेल विपणन कंपनियों (OMCs) को भारी घाटे का सामना करना पड़ रहा है।

उम्मीद की किरण: FY26 में घाटा हो सकता है 45% कम

केयरएज रेटिंग्स की एक ताज़ा रिपोर्ट ने तेल कंपनियों के लिए राहत की उम्मीद जगाई है। रिपोर्ट के अनुसार, अगर कच्चे तेल की कीमतें $65 प्रति बैरल के आसपास स्थिर रहती हैं, तो FY26 (वित्त वर्ष 2026) में एलपीजी से होने वाले घाटे (अंडर-रिकवरी) में करीब 45% की कमी आ सकती है। यह आकलन अंतरराष्ट्रीय एलपीजी की कीमतों में संभावित गिरावट और घरेलू खुदरा कीमतों में हालिया वृद्धि को ध्यान में रखते हुए किया गया है।


रिपोर्ट में क्या कहा गया है?

केयरएज रेटिंग्स की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि एलपीजी की अंडर-रिकवरी को लेकर कंपनियों पर जो वित्तीय बोझ है, उसमें आने वाले समय में कमी आ सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है:

"अगर कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें $65 प्रति बैरल के स्तर पर बनी रहती हैं, तो FY26 में कुल एलपीजी अंडर-रिकवरी में लगभग 45 प्रतिशत की कमी हो सकती है।"

इससे तेल कंपनियों की लाभप्रदता (profitability) में सुधार होगा और सरकार पर सब्सिडी का बोझ भी कम पड़ेगा।


एलपीजी उपभोक्ताओं की संख्या 10 वर्षों में दोगुनी

भारत सरकार की योजनाओं और उज्ज्वला योजना जैसे अभियानों के चलते एलपीजी उपभोक्ताओं की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है। 10 वर्षों पहले जहां उपभोक्ताओं की संख्या लगभग 16 करोड़ थी, वहीं 1 अप्रैल 2025 तक यह बढ़कर 33 करोड़ तक पहुंच चुकी है। इसका सबसे बड़ा असर घरेलू मांग पर पड़ा है, जो अब तेजी से उत्पादन से आगे निकल चुकी है।

भारत में कुल एलपीजी खपत का 90% भाग घरेलू उपयोग में जाता है, जबकि शेष 10% का इस्तेमाल वाणिज्यिक, औद्योगिक और ऑटोमोबाइल सेक्टर में होता है।


आयात पर बढ़ती निर्भरता: घरेलू उत्पादन नहीं कर पाया साथ

रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ती मांग के बावजूद भारत के रिफाइनर्स एलपीजी उत्पादन को समुचित स्तर तक नहीं बढ़ा पाए हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि देश को अपनी ज़रूरत का बड़ा हिस्सा आयात के जरिए पूरा करना पड़ रहा है।

  • FY25 में भारत की कुल एलपीजी ज़रूरत का 60% हिस्सा आयात से पूरा किया गया।

  • 10 साल पहले यह आंकड़ा 46% था, यानी आयात पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है।

आयात पर निर्भरता का मतलब है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में होने वाले दामों में उतार-चढ़ाव का सीधा असर झेलना पड़ता है।


FY25 में OMCs को हुआ 41,270 करोड़ रुपये का घाटा

तेल कंपनियों को 14.2 किलोग्राम वाले घरेलू एलपीजी सिलेंडर पर औसतन ₹220 प्रति सिलेंडर का घाटा उठाना पड़ा। इस घाटे के कारण तीनों प्रमुख तेल कंपनियों—इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL), और हिंदुस्तान पेट्रोलियम (HPCL) को FY25 में कुल मिलाकर ₹41,270 करोड़ का नुकसान हुआ।

यह घाटा सीधे तौर पर एलपीजी की नियंत्रित खुदरा कीमतों से जुड़ा हुआ है, जिसे सरकार गरीब और मध्यम वर्ग के लिए सुलभ बनाए रखने के उद्देश्य से तय करती है।


एलपीजी कीमतों में हालिया वृद्धि से राहत की उम्मीद

8 अप्रैल 2025 को सरकार ने घरेलू एलपीजी सिलेंडर की कीमत में ₹50 प्रति सिलेंडर की बढ़ोतरी की थी। इससे FY26 में घाटे में लगभग 25% तक की कमी आने की उम्मीद है।

साथ ही, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एलपीजी के प्रमुख बेंचमार्क "सऊदी कॉन्ट्रैक्ट प्राइस (Saudi CP)" में भी मार्च और मई 2025 के बीच गिरावट देखी गई है। यदि यह ट्रेंड जारी रहा, तो एलपीजी अंडर-रिकवरी में और 20% तक की कमी आ सकती है।


क्या है आगे की राह?

एलपीजी घाटे में कमी आने के ये संकेत तेल कंपनियों के लिए निश्चित ही राहत लेकर आए हैं, लेकिन लंबी अवधि के लिए कुछ अहम कदम उठाना अनिवार्य है:

1. घरेलू उत्पादन बढ़ाने की ज़रूरत

सरकार को घरेलू रिफाइनिंग क्षमताओं में सुधार लाने और एलपीजी उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने पर ज़ोर देना होगा।

2. आयात निर्भरता घटानी होगी

बढ़ती आयात निर्भरता भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक चुनौती है। इसके लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी।

3. सब्सिडी मॉडल में सुधार

जरूरतमंदों को लक्षित सब्सिडी और बाकी उपभोक्ताओं के लिए बाजार आधारित मूल्य निर्धारण पर विचार किया जा सकता है।

4. नवीकरणीय ईंधन विकल्पों को प्रोत्साहन

जैव-गैस, पीएनजी और अन्य स्वच्छ ईंधनों को बढ़ावा देकर एलपीजी पर दबाव कम किया जा सकता है।


निष्कर्ष:

एलपीजी उत्पादन की रफ्तार देश की बढ़ती मांग के मुकाबले पीछे छूट गई है, जिससे आयात निर्भरता और घाटा दोनों बढ़ रहे हैं। लेकिन FY26 के लिए सामने आई केयरएज रेटिंग्स की रिपोर्ट उम्मीद की एक किरण जरूर देती है। यदि अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल और एलपीजी की कीमतें नियंत्रित रहती हैं और घरेलू खुदरा कीमतों में समय-समय पर संतुलित बढ़ोतरी होती है, तो एलपीजी घाटे में कमी आ सकती है, जिससे OMCs को राहत मिलेगी और सरकार की सब्सिडी लागत भी घटेगी।


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